आज फिर शोर है मेरे कानो में,
कहीं तो खोट है मेरे पैमानों में
जुबान पर झूट है और सच है इन मैखानो में...
कितना शोर है मेरे कानो में
मैं बोलती गयी और दिल नकारता गया..
ये नशा भी धोखा खाता गया
चुप क्यूँ है बोल दिल , क्यूँ बैठा है इन तैखानो में
बता क्यूँ है शोर इन कानो में ?
अब सुबह नही होनी, न होनी मेरी रात
बस कुछ ही दिन की है ये बात
दर्द होगा पर एहसास नही
हर बात होगी पर बात नही
अब टूटेगा ये भ्रम तेरा
की रुख मैंने तेर दिल का किया है
ये शोर तेरे कानों का इसी का दिया है
तु रुक जा साभर कर अब इसकी शामत आई है
तेर कानो मे गूंजता शोर असल में इस दिल की तन्हाई है
जो मैंने पूछा हाल ए दिल
तो भर आंखे वो रो पड़ा
पसीस गया ये मन मेरा पर वो कुछ न बोल सका
के अब कानो तुमसे है ये दुआ की छोड़ दे शिकवा गिला
की शोर तो होना ही है कानो में हर ख्वाब जो टुटा पड़ा है मेरे दिल तैखानो में.
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