आज दर्द लिखना चाहती हूँ
खूब लिखना चाहती हूँ
जो रूठे हैं उन्हें नहीं मनाना
पर जो माने है उन्हें सताना नहीं चाहती हूँ
आज दर्द लिखना चाहती हूँ
खूब लिखना चाहती हूँ
बीत गए जो पल उनका उजाला न बटोर सकी
जो आज है मेरा उसे जीना चाहती हूँ
आज दर्द लिखना चाहती हूँ
खूब लिखना चाहती हूँ
मेरे अपनों ने मुझे ठुकराया तब इस ज़माने ने मुझे अपनाया
आज हर किसी को शुक्रिया कहना चाहती हूँ
आज अपना दर्द लिखना चाहती हूँ
खूब लिखना चाहती हूँ
शिकायत नहीं की तुम न समझ सके
तुम बीच सफर में हाथ छोड़ चले , क्यों? बस इतना पूछना
चाहती हूँ
आज दर्द लिखना चाहती हूँ
खूब लिखना चाहती हूँ
मेरे घर पर है कोई इंतज़ार कर रहा
उसकी बाहों
में उसका बेटा वापस देना चाहती हूँ
आज दर्द लिखना चाहती हूँ
खूब लिखना चाहती हूँ